मेरी स्मृति…
आज वह मेरे साथ नहीं
महसूस करता हूँ कि
ताउम्र करती रही, तलाश वह
अपने अस्तित्व की।
मासूम सी वह
छिपी बैठी रहती थी,
अपने ही मन के अंधेरो में
छिपाकर
असंख्य उम्मीदें, प्रश्न अनगिनत।
था फिर भी ठहराव
एक संजीदगी
एक गहराई, मधुर मुस्कान
उसकी बेचैनियों में।
तलाश ही लिया उसने,
अपने अक्स को
स्वयं को बचाने की कोशिश में
और बचा मेरे पास सिर्फ
चंद दिलकश, कुछ उदास यादें।