मेरी वेदना
शीर्षक -मेरी वेदना
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मेरी वेदना को तुम,सुन न पाओगे।
सुनाऊं जो उर की पीड़ा,
तुम सह न पाओगे।।
जीवन के पथ पर मैंने,
कांटे ही पाए थे!
मैं चली उस पथ जिसमें,
तुमने फूल बिछाए थे !
अगर मुझे पीड़ा ही देनी थी,
तो सुखों के सपने दिखाए क्यों?
मेरे हृदय में प्रेम दीप ,
तुमने ही आकर जलाए क्यों?
मधुर -मधुर सा गीत सुना,
मुझको दीवाना बनाया क्यों!
मझधार में ही छोड़ जाना था,
तो मुझको अपनाया ही क्यों!
यदि प्रिय! तुमको ऐसा निष्ठुर,
बन जाना ही था?
तो फिर क्यों मुझसे नेह कर,
मुझको दीवाना बनाया था?
निर्झर -सी झर रही हैं,
यह झर-झर आंखें अविराम!
नहीं रूक रहे अश्रू मेरे,
और ना ही ले रहे विश्राम!!
सुषमा सिंह*उर्मि,,