मेरी माँ
छोटी छोटी बातों से जो खुश हो जाती थी।।
रास्ते चलते का दुख दर्द जो बाँट लेती थी।।
मेरी माँ ऐसी थी।
रोती आँखों को जो हँसा देती थी।
अपने सारे दुख दर्द सब से छुपा लेंती थी।
मेरी माँ ऐसी थी।
अपने हिस्से की खुशियां दे कर
सब को खुशियां दे गयीं।
सब कुछ छोड़ कर,
खुद तन्हा सो गयी।
मेरी माँ ऐसी थी।
हो कोई न तकलीफ बच्चों को
इसलिए अपनी सारी तकलीफ झेल गयी।
मेरी माँ ऐसी थी।
अंधरो में जो रोशनी की किरण बन जाती थी।
हो कोई बच्चा उदास तो खुद बच्चा बन जाती थी।
मेरी माँ ऐसी थी।
संध्या चतुर्वेदी
मथुरा, उप