मेरी माँ…
गिनती नही आती मेरी माँ को यारों,
मैं एक रोटी मांगता हूँ वो हमेशा दो ही लेकर आती है.
जन्नत का हर लम्हा दीदार किया था
गोद मे उठाकर जब मॉ ने प्यार किया था
सब कह रहें हैं
आज माँ का दिन है
वो कौन सा दिन है..
जो मां के बिन है
सन्नाटा छा गया बटवारे के किस्से में…
जब माँ ने पूछा मैं हूँ किसके हिस्से में…
घर की इस बार
मुकम्मल तलाशी लूंगा!
पता नहीं ग़म छुपाकर
हमारे मां बाप कहां रखते थे…?
एक अच्छी माँ हर किसी
के पास होती है लेकिन…
एक अच्छी औलाद हर
माँ के पास नहीं होती…
जब जब कागज पर लिखा , मैने ‘माँ’ का नाम
कलम अदब से बोल उठी , हो गये चारो धाम
माँ से छोटा कोई शब्द हो तो बताओ
उससे बडा भी कोई हो तो भी बताना…
मंजिल दूर और सफ़र बहुत है .
छोटी सी जिन्दगी की फिकर बहुत है .
मार डालती ये दुनिया कब की हमे .
लेकिन “माँ” की दुआओं में असर बहुत है.
माँ को देख,
मुस्कुरा लिया करो..
क्या पता किस्मत में
तीर्थ लिखा ही ना हो
मृत्यु के लिए बहुत रास्ते हैं पर.
जन्म लेने के लिए केवल माँ.
माँ के लिए क्या लिखूँ ? माँ ने खुद मुझे लिखा है |
दवा असर ना करें तो
नजर उतारती है
माँ है जनाब…
वो कहाँ हार मानती है |
संतोष रॉय
वैशाली, बिहार