मेरी बिटिया
चिड़ियों सा मीठा स्वर,
फूलों की मधुर मुस्कान,
तुतलाती सी आवाज लिए,
पूरे घर में फिरती रहती है।
कभी तारों का पता पूछती,
कभी इंद्रधनुष का प्रतचां ढूंढती,
कभी बादलों संग दौड़ करती,
पूरे मोहल्ले में खेला करती है।
चोट लगने पर मुझे पुकारती,
तो कभी मेरी चोट पर मुझे पुचकारती,
वो सुख दुख के साथी बन,
मेरे साथ ही घूमती रहती है।
भयभीत हो कभी मेरे आंचल में छिपती,
कभी मेरे लिए अपने पिता से भी लड़ती,
वह अबोध सी बेटी मेरी, मुझे
मेरे हृदय का टुकड़ा लगती है।
मुझे बना अपनी सखी मेरे संग खेला करती है,
कभी रसोई में आटा लेकर रोटी सेका करती है,
वह नन्हीं सी परछाई मेरी,
मुझे मेरे बचपन का स्वरूप ही लगती है।
लक्ष्मी वर्मा ” प्रतीक्षा”
खरियार रोड, ओड़िशा।