मेरी बारिश मुझसे रूठी है
पूछा बेटी ने एक रोज़,
मॉं बारिश की बूँदे गोल क्यों होती हैं ।
बेतुका उत्तर था मेरा, सुनकर वो हँस देती है ।
बूंदें गोल हैं, क्योंकि
मेरी बारिश मुझसे रूठी है ।
बूंदें गोल हैं, क्योंकि वे मुँह फुलाए बैठीं हैं।
क्यों मॉं, बारिश तुमसे ही क्यों रूठती है
हमसे तो नहीं रूठती ।
उत्तर देते हुए मेरी ऑंखें छलछलाईं ,
चेहरे के समक्ष,
बचपन की भीगी यादें बिखर आईं।
काग़ज़ की कश्ती की वो रेस,
रेनकोट के दो टूटे बटन,
छत्री के तारों को धागे से सीलना,
मॉं से छुपकर छत पर भीगना।
जुकाम होने पर दादी का वह काढ़ा भी बहुत भाता था
इतने में पड़ौसी दाल पकौड़े दे जाता था।
अब तो मित्रों, पकौड़े खाने में भी डर लगता है,
दो खा लें तो ,एक किलो वज़न बढ़ जाता है ।
हर सावन में भीगने का मन बनाती हूं, पर भीग नहीं पाती हूं
बिमार हो गई तो घर कौन सम्हालेगा, सोच कर डर जाती हूं
इसलिए ही मेरी बारिश मुझसे रूठी है,
वह मुँह फुलाए बैठी है।