मेरी प्रेरणा
बचपन उसने जीया ही नहीं
भार कंधों पर उसके आ गया था
उसके सिर से जो बाप का साया
अचानक एक दिन उठ गया था
वक्त ने उसको ज़िम्मेदारियाँ दी
उसने भी हिम्मत नहीं हारी कभी
डटकर लड़ता रहा, जूझता रहा
लेकिन चेहरे से मुस्कान नहीं गई कभी
नंगे पैरों से पहाड़ों को चढ़ा उसने
कांटों की भी कभी परवाह नहीं की उसने
कर दिया ख़ुद को इतना मज़बूत
ज़ख्म मिले लेकिन आह तक नहीं की उसने
आज तपस्या रंग लाई है उसकी
अपनी मेहनत से सफलता पाई है उसने
डालते रहे जो उसकी राह में रोड़े
उनको भी हाथ पकड़कर राह दिखाई है उसने
नहीं चला वो केवल ख़ुद
साथ ले लिया था कारवां उसने
अकेले सफ़र शुरू करके
खुशहाल कर दिया पूरा कारवां उसने
दिखाकर अपना जज़्बा
कितनों को दिया सबक़ उसने
जिसने जब चाहा साथ छोड़ दिया
लेकिन फिर भी, कभी उफ़्फ तक न की उसने।