मेरी प्रेम गाथा भाग 3
मेरी प्रेम गाथा भाग 3
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आखिर कुछ दिन बाद वो दिन भी आ गया जिस दिन का बेसब्री से इंतजार था,उसका जन्मदिन। एक दिन पूर्व ही शाम को असेंबली से पहले छोटी बहन अनामिका को बता दिया था कि मैने प्रियांशु के जन्मदिन पर उपहारस्वरूप गिफ्ट लाया हूँ और जो उसे देना हैं।इसलिए वह उसे असेंबली के बाद मेस के पिछले गेट की तरफ रोक ले,जहाँ आवागमन कम था।अनामिका यह सब करने हेतु मान गई थी।मैं पहली बार साक्षात प्रियांशु त्रिपाठी से मिलने वाला था, खुशी से ज्यादा मुझे घबराहट हो रही थी।
अगल दिन असेम्बली के तुरंत बाद मैंमे के पिछले गेट पर गया,जहाँ अनामिका प्रियांशु को साथ लेकर खड़ी थी। मैने जेब से पैन निकाला औरर प्रियांशु को जन्मदिन की शुभकामनाएं देते हुए आँखें नीचे रहकते हुए हिचकिचाहट के साथ कांपते हाथों से तेजी से उसके हाथों में थमा दिया। प्रियांशु ने प्रतिउत्तर मैं मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा-थैंक्यू वैरी मच भैया।
यह सुनते ही मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई और आँखों सामने अंधेरा छि गया।खुद पर नियंत्रण रखते हुए हिम्मत जुटाकर दबी जुबान से आगे से भैया नहीं कहने को कहा। उसने कहा क्यों ना कहूं भैया।जवाब में मैंने कहा कुत दिन बाद खुद जिन जाओगी।
मैं मुस्कुराते हुए वापिस आ गया।मैनी चोर नजरों से चुपके से देखा तो वह भु अनामिका के साथ मुस्कुरा रही थी। आशिकी के फितूर में कब आठवें खक्षा पास की पता ही नहीं चला।
सुखविंद्र सिंह मनसीरत