मेरी दादी मुझसे बहुत लाड़ लडाती थी।
मेरी दादी मुझसे बहुत लाड़ लडाती थी।
वह हर वक्त मुझे नए-नए नामों से बुलाती थी ।
जैसे मानो उसे मेरा नाम पता ही न हो
जब भी मम्मी मुझे डांटने या मारने आती
मैं दादी के पीछे छुप जाती।
और जब दादी मुझे बचाती,
तो मम्मी दादी पर ही चिल्लाती ,
तुमने ही इसे बिगाड़ा है सर पर इसे चढ़ाया है
मम्मी खूब बड़बड़ाती
दादी बच्ची है कहकर बस हंसती जाती
और मम्मी के जाने पर मुझे बहुत फटकार लगाती
और कहती आज बचा लिया आगे कभी ना बचाऊंगी
ऐसा कहकर वह मुझे हर बार बचाती थी
मेरी दादी मुझे बहुत लाड लडाती थी
हर रोज रात 8:00 बजे से ही दादी Sets बिस्तर लगाती और हर रोज वह मुझे अपने पास सुलाती थी
और कुछ अतरंगी से गीत
और प्यारी सी कहानियां सुनाती थी
मेरी दादी मुझे बहुत लाड़ लडाती थी
मम्मी से लड़ाई हो जाने पर वह चुपके से
एक छोटे से बर्तन में दूध रोटी खाती
और बर्तन को साफ कर किचन में जमाती
और इस बात की मैं एक अकेली चश्मदीद गवाह कहलाती पर मैं मेरी दादी से मात्र ₹2 में ही बिक जाती
और मम्मी को कभी भी कुछ न बताती
मेरी दादी मुझे बहुत लाड़ लड़ाती
बड़े दिनों में वह चूल्हे, चकिया और मटेली बनाती
और होली में मलरियां और फाग के न जाने कैसे-कैसे गीत सुनाती थी
पढ़ लिख कर कछु बनिए मोडीं हर बार यही बताती
अगर आज वह जिंदा होती तो दुगना लाड लड़ाती
अगर आज वह जिंदा होती तो दोगुना लाड लड़ाती।