मेरी कलम कविता
लोग कहते है कि कुछ दिनों से
मैं बदल सा गया हूं
पर लगता है समय से पहले
मैं संभल सा गया हूं
चाहे मेरा कोई साहित्यिक अतीत नही
और भविष्य भी प्रतीत नही
पर वर्तमान को निरंतर नया रूप देने को
अग्रसर है मेरी कलम
जिसमे भावों व अंतर्द्वंदो की
सुखद घुटन
ना जाने कब से पीड़ा भोग रही है
बाहर आने के लिए
व्यष्टि से समष्टि की ओर
अनंत विस्तार पाने के लिए
@ ओम प्रकाश मीना