*उन्हें दुर्भाग्य से लत है (गीतिका)*
उन्हें दुर्भाग्य से लत है (गीतिका)
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(1)
न जिनकी जेब में पैसा, न रहने की निजी छत है
नियम से रोज पीने की, उन्हें दुर्भाग्य से लत है
(2)
कहाँ लिखता है अब कोई, कलम से कागजों पर कुछ
जमाना हो गया दिखता, नहीं कोई कहीं खत है
(3)
मुझे मालूम है झीलों में, अब हलचल नहीं होती
मगर मैं फेंकता कंकड़ हूँ, मेरी रोज आदत है
(4)
जिसे आलस्य प्यारा है, सदा सोते ही पाओगे
जगत में कर्मयोगी किंतु, अपने कार्य में रत है
(5)
निरभिमानी कहॉं अपनी, बड़ाई आप करता है
सदा औरों के सम्मुख शीश, उसका नम्र हो नत है
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ख़त = पत्र, चिट्ठी
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उ.प्र.)
मोबाइल 9997615451