मेरा हिस्सा
सृजन का शायद कोई नियम रहा होगा,
तभी तो विरोधाभास अस्तित्व में आया,
आदम और हव्वा बन अवतरत हुए जब हम,
तो कोमलता का पर्याय बनी मैं,
तो कठोरता का प्रसाद तुम्हारे हिस्से आया,
नादानी रूपी साँप ने डँसा जब मुझे,
तो समझ का फल तुम्हें खिलाया,
बस यहीं से ख़ुद को श्रेष्ठ समझने का,
तुम्हारा उपक्रम चलता रहा,बार-बार लगातार,
पर यदि होते एक से हम,
तो सृष्टि का विघटन,
हमने शायद सुनिश्चित था पाया,
तभी विघटन को तुमने और सृजन को मैंने अपनाया,
हर कठोर पर तुम्हारा अधिकार और हर कोमल भावना पर स्त्रीलिंग था छाया,
तुम्हें आता कहाँ था कुछ बचाना,संभालना-सँवारना,
यह तत्व था मुझमें और मैंने था अपनाया,
तो हर वो चीज़ जिसकी नियति थी बनना,
संवर जाना,
उसे मैंने था बनाया,
तुमने ढूँढा, मैंने उपजाया,
क्यूँकि सृजन था केवल मेरे हिस्से आया,
तुम्हारी हर पहचान का अर्थ और विपरीत बनी मैं, क्यूँकि यही नियम था उत्पति का,
चलन और प्रवृति का,
तुम्हारी हर शक्ति का वहन केवल मुझ से होगा,
यह वरदान मैंने ईश्वर से है पाया,
मेरे बिना कोई अस्तित्व नही हो सकता था तुम्हारा,
क्यूँकि सृजन था केवल मेरे हिस्से आया,
केवल मेरे हिस्से आया………