मेरा भी कुछ हिसाब बाकी
मेरा भी कुछ हिसाब बाकी
सूखे शब्दों के मत भेदों ,
कुछ -कुछ नरम गरम ,
भूली – बिखरी कर्म ,
उलझी – सुलझी धर्म ।
श्वास कम उम्र ज्यादा,
रात कम ख्वाब ज्यादा,
खुशी कम गम ज्यादा,
इश्क कम जीद ज्यादा ।
माप -तोल तो हुआ नहीं,
हिसाब तो रखा भी नहीं,
किसका जायदा किसका कम,
बाकी कुछ हिसाब अभी ।
अब तो भाग्य पर छोडी,
कर्म खराब तो किया नहीं,
धर्म अपना भी छोडी नहीं,
पाप पूर्ण का हिसाब रखी नहीं ।
वापसी आ कर देख लो,
लाभ नुकसान का खाता,
लाभ आप ही रख लेना,
नुकसान मुझे दे देना।
जो बोलिएगा मान लुंगी,
मिल बैठ कर गलतफहमी दूर होगी,
तनहाई की हिसाब अभी बाकी रहेगी
इसी बहाने एक बार देख लूंगी ।
बेबेसी की कहानी सुना पाऊंगी,
खुशियां कितनी किमती बता पाऊंगी,
घाव अभी भरे नहीं दिखा पाऊंगी,
बस एक बार लौट के आ जाइए।
मेरा भी कुछ हिसाब बाकी ।।
गौतम साव