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14 Nov 2019 · 1 min read

मेरा बचपन

बचपन ही
ऐसा है
जो भूले नहीं
भूलता है
अम्मा की
चूल्हे पर बनी
सौंधी रोटी
याद आती है

गल्ली डंडे की चोट
पुराने साईकिल के
पहिये को दौडना
याद आता है

अंटी खेला
करते थे गलियों में
मास्साब की
धडपकड
याद आती है

सफेद कमीज
खाकी नेकर
और पाठशाला
की टाटपट्टी
याद आती है

बाल सभा तो
भूल ही गये
भगत सिंह
आजाद के गीत
याद आते हैं

गलत जबाब
देने पर
बेशर्म की डाल
से मार
याद आती है

पुरानी किताबे
ले कर
अगले साल
फिर किताबे
दूसरे को देना
याद आता है

बरसते पानी में
सिर पर बस्ते
रख कर भागना
याद आता है

अम्मा की
पूजा और
प्रसाद के लिए
एक आँख
खोल कर
बार बार
शालीग्राम जी
को देखना
याद आता है

कोमल बाल मन
की धुंधली यादें
और वो बाल दिवस
याद आता है

क्यों हो गये
हम इतने बड़े
बाल सफेद
और झुर्रिया
चेहरे पर
शायद अब
लोट नहीं सकेंगी
मेरा बचपन
बुढ़ापे ने लील
खाया है

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
1 Like · 232 Views
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