मेरा बचपन
बचपन ही
ऐसा है
जो भूले नहीं
भूलता है
अम्मा की
चूल्हे पर बनी
सौंधी रोटी
याद आती है
गल्ली डंडे की चोट
पुराने साईकिल के
पहिये को दौडना
याद आता है
अंटी खेला
करते थे गलियों में
मास्साब की
धडपकड
याद आती है
सफेद कमीज
खाकी नेकर
और पाठशाला
की टाटपट्टी
याद आती है
बाल सभा तो
भूल ही गये
भगत सिंह
आजाद के गीत
याद आते हैं
गलत जबाब
देने पर
बेशर्म की डाल
से मार
याद आती है
पुरानी किताबे
ले कर
अगले साल
फिर किताबे
दूसरे को देना
याद आता है
बरसते पानी में
सिर पर बस्ते
रख कर भागना
याद आता है
अम्मा की
पूजा और
प्रसाद के लिए
एक आँख
खोल कर
बार बार
शालीग्राम जी
को देखना
याद आता है
कोमल बाल मन
की धुंधली यादें
और वो बाल दिवस
याद आता है
क्यों हो गये
हम इतने बड़े
बाल सफेद
और झुर्रिया
चेहरे पर
शायद अब
लोट नहीं सकेंगी
मेरा बचपन
बुढ़ापे ने लील
खाया है
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल