मेरा प्यार
ये आँखों की गहराई
लटों की अंगड़ाई
बहुत हो चुका
अब
तुम मेरा सौंदर्य
नापोगे
मेरे शरीर की ऊर्जा से
नहीं चाहियें
तुम्हारे चाँद तारे
चाहियें उनके
होने, न होने के अर्थ
मुझे सिर्फ
फूल का सौंदर्य
ही नहीं भाता
सुहाता है
केंचुए का
जमीन खोदना भी
भारत की बेटी हूँ
मुझे वो भाएगा
जो जोड़ सकेगा
स्वयं को
इसके इतिहास
और जीवन मूल्यों से
देवदास , मजनू
को लेकर
मैं
क्या करूंगी
मुझे चाहिए
गिरकर सम्भलने वाला
तपस्वी इंसान
आज प्यार होगा
और पहले से गहरा होगा
पर , होगा
हमारे तुम्हारे बीच की
उन धड़कनों में
जो बज उठती हों
संगीत सी
मन मस्तिष्क के
विस्तृत होने की
संभावना से।
शशि महाजन – लेखिका