Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Oct 2022 · 3 min read

मेरा दर्शन ( my philosophy)

दर्शन शब्द सुनते ही जेहन में किसी की विचारधारा ,किसी का मत ,किसी की राय,किसी का वक्तव्य,और किसी के जीवन शैली का पता चलता है । दर्शन वास्तव में एक व्यापक समझ है दर्शन जीवन की गहराई का अनुभव भी हो सकता है और किताबी दुनिया से जन्मी एक असाधारण समझ । पर दर्शन तो दर्शन है ।
किसी ने खूब कहा है कि ,” बड़े लोगो के दर्शन का अनुसरण करो शायद सवालों के जवाब मिल जाये ।”

खैर दर्शन का वह मतलब नही है जो दर्शन मंदिरों के बाहर या अंदर ईश्वर के रूप में होता है ,यह दर्शन वह नही जो किसी के मिलने पर होता है । यह दर्शन तो व्यक्ति के व्यक्तित्व की गहराइयों की शोध है जो उसके मानसिक वह बुद्धिमता के तेज को प्रदर्शित करती है ,जो उसके विचारधारा से ओत प्रोत हो कर समाज -देश-रास्ट्र-व्यक्ति सभी के जीवन को सारगर्भित करती हैं ।

मेरा भी दर्शन कुछ खास नही,पर जीवन के आधी उम्र में दर्शन या विचारों से बंध जाना या भटक जाना लाजमी होता है ।
जिंदगी को करीब से देखने के बाद , सिद्धि-असिद्धि के मध्य समन्वय का स्थापित होना , तर्क-वितर्क की जिज्ञासा से खुद को प्रोत्साहित करना, परोपकारिता जैसे गुण जो जनसामान्य के आम है उनके संग तालमेल बिठाना, धार्मिक सहिष्णुता के पक्ष का समर्थन और ,मौज-मस्ती-बेबाक जीवन की शैली से स्वयं को सजाना ही मेरा दर्शन या विचार है ।

मेरा कोई उदेश्य आदर्शोउन्मुखी नही है ,मेरा घोर यथार्थवादी भी नही बल्कि इनके बीच का रास्ता मध्यममार्ग मेरी समस्याओं का निजात दिलाने वाला मेरा हथियार है । मौन मेरा पहले से ही विरोधी रहा है क्योकि मुझे लगता है ज्यादा मौन व्यक्ति पाखंडी,घमंडी और डरपोक बना देता है जरूरत है कि वक्त पर मौन को तोड़ देना चाहिए ।।

समाजिक-धार्मिक-रीति-रिवाज और परम्पराओं से इतर मेरा अधिक झुकाव स्वतंत्रता की तरफ़ है जो समानता से होकर गुजरती है मुझे अहस्तक्षेप की नीति पसंद है जो मुझे अनावश्यक और निरथर्क विचारों से बचाती है ।

मुझे राम-कृष्ण-दुर्गा-काली से इतर जैन-बौद्ध-सिख-यहूदी-इसाई में उतना ही रुचि है जितना इस्लाम के लोगो मे इस्लाम को लेकर और हिन्दू को गीता को लेकर । खैर मेरे लिए ईश्वर एक अनदेखा निराकार वस्तु है जिसे हम बिना देखे ही मानते हैं मैं भी मानता हूँ लेकिन मैं उन आडम्बरों से दूर रहता हूँ जो सामान्य की तुलना में ज्यादा है । मेरे लिए पुराण,गीता, कुरान,बाइबिल,ब्राहमण ग्रन्थ,वेद,उपनिषद केवल विचारों का संकलन है जो उस काल विषयवस्तु और परिस्थितियों से जन्मी आकांक्षा से किसी विद्वान की रचना से लिखी गयी थी । और कुछ नही ।जो ठीक भी है और नही भी ।

मैं अक्सर जैन के स्यादवाद को तरजीह देता हूँ कि कोई गलत नही होती है अगर गलत है तो विचार ,नजरिया या परिस्थिति ,और कुछ नही ।।

मुझे किताबे पढ़ने का शौक है शायद किताबो में मोटिवेशनल, इतिहास,शोध से सम्बंधित, प्रेम प्रसंगों से ओत प्रोत पसंद है वैसे भी किताबे आत्मसन्धान का एक अच्छा तरीका है ।

मुझे कुछ मात्रा में सिनेमा का भी शौक है ,चाहे वह हिंदी,भोजपुरी,और साउथ इंडियन हो ।पर समस्या यह है मुझे कोई हीरो नही पसंद या उसका नाम नही पता ।

मुझे घूमना,नई जगह पर जाना,और लोगो से मिलना-जुलना बाते करना ठीक लगता है ताकि स्वयं को खुश रहने का तरीका महसूस होता है ।

अतः जीवन के आधी दौर में यह दर्शन अभी परिपक्वता की आधी दूरी या एक छटाँक भर ही है जो आदर्शवादी और यथार्थवादी के मध्य पिसती और भटकती है फिर भी दर्शन का होना जीवन के अनुशासन को प्रदर्शित करता है कि व्यक्ति किसी विचार व राय में विश्वास करता है ।

~ rohit

Language: Hindi
164 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
" बदलाव "
Dr. Kishan tandon kranti
3972.💐 *पूर्णिका* 💐
3972.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
सफाई कामगारों के हक और अधिकारों की दास्तां को बयां करती हुई कविता 'आखिर कब तक'
सफाई कामगारों के हक और अधिकारों की दास्तां को बयां करती हुई कविता 'आखिर कब तक'
Dr. Narendra Valmiki
आनंद से जियो और आनंद से जीने दो.
आनंद से जियो और आनंद से जीने दो.
Piyush Goel
गर्मी और नानी का घर
गर्मी और नानी का घर
अमित
नारी का सम्मान नहीं तो...
नारी का सम्मान नहीं तो...
Mohan Pandey
*** अंकुर और अंकुरित मन.....!!! ***
*** अंकुर और अंकुरित मन.....!!! ***
VEDANTA PATEL
अधूरा प्रेम
अधूरा प्रेम
Mangilal 713
आओ!
आओ!
गुमनाम 'बाबा'
......... ढेरा.......
......... ढेरा.......
Naushaba Suriya
कुंंडलिया-छंद:
कुंंडलिया-छंद:
जगदीश शर्मा सहज
😊■रोज़गार■😊
😊■रोज़गार■😊
*प्रणय*
चिरैया पूछेंगी एक दिन
चिरैया पूछेंगी एक दिन
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
*झाड़ू (बाल कविता)*
*झाड़ू (बाल कविता)*
Ravi Prakash
मैं नारी हूँ
मैं नारी हूँ
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
बेटियों  को  रोकिए  मत  बा-खुदा ,
बेटियों को रोकिए मत बा-खुदा ,
Neelofar Khan
आइना फिर से जोड़ दोगे क्या..?
आइना फिर से जोड़ दोगे क्या..?
पंकज परिंदा
सज़ल
सज़ल
Mahendra Narayan
बस तू हीं नहीं मुझसे एक बेवफ़ा हुआ...
बस तू हीं नहीं मुझसे एक बेवफ़ा हुआ...
Shweta Soni
लिखना पूर्ण विकास नहीं है बल्कि आप के बारे में दूसरे द्वारा
लिखना पूर्ण विकास नहीं है बल्कि आप के बारे में दूसरे द्वारा
Rj Anand Prajapati
Lines of day
Lines of day
Sampada
दोगलापन
दोगलापन
Mamta Singh Devaa
कुछ लोग बात को यूॅं ही बतंगड़ बनाते हैं!
कुछ लोग बात को यूॅं ही बतंगड़ बनाते हैं!
Ajit Kumar "Karn"
सरस्वती वंदना-6
सरस्वती वंदना-6
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
शुक्र मनाओ आप
शुक्र मनाओ आप
शेखर सिंह
दशमेश पिता, गोविंद गुरु
दशमेश पिता, गोविंद गुरु
Satish Srijan
*****देव प्रबोधिनी*****
*****देव प्रबोधिनी*****
Kavita Chouhan
इस तरह क्या दिन फिरेंगे....
इस तरह क्या दिन फिरेंगे....
डॉ.सीमा अग्रवाल
व्यर्थ यह जीवन
व्यर्थ यह जीवन
surenderpal vaidya
सत्य की खोज अधूरी है
सत्य की खोज अधूरी है
VINOD CHAUHAN
Loading...