“मेरा चांद”
रोज रात को चांद को देखा करता हु,
सीतारो से घेरा रहता है.
उसकी सुंदर काया पे,
घंटो बाते करता रहता हु…
मोहलीया है उसने मुझको,
अपनी सुंदर काया से.
सबकुछ भूल गया मै,
उसकी शर्मीलि आँखो मे…
हर रोज तुम अपनी शर्मीलि आँखो से,
बस मुझेही देखा करते हो.
कुछ तो कहना है तूम्हे,
और मै तूम्हें देखा करता हु…
मन मे हर बार ए सोचता था,
के कोई इतना खुबसुरत होता है.
चांदणी भी जलती होगी मुझ पे,
इतनी शायरी कर चुका हु चांद पे…
डर लगता है कभी कभी,
मेरी नजर ना लगे तूम्हे.
हमेशा रात को ऐसेही देखू तुम्हे,
कभी ग्रहण ना लगे तूम्हे…