मेरा इश्क सूफ़ियाना
मेरे दिल को तेरा आशियाना कहूँ तो कुछ भी ज्यादा नही
तुझे ज़िन्दगी नही मेरा जमाना कहूँ तो कुछ भी ज्यादा नही
मुझे तो तेरे साये में सारी उम्र गुजारनी है
इश्क इक बहाना कहूँ तो कुछ भी ज्यादा नही
हर मुलाकात में पहले से ज्यादा मोहब्बत हो जाती है
तुझे कातिलाना कहूँ तो कुछ भी ज्यादा नही
गुलशन में ये जो खुशबुएँ बिखरी हुईं हैं
वजह तेरा मुस्कराना कहूँ तो कुछ भी ज्यादा नही
तेरे नजदीक और खुद से दूर हो गया हूँ मैं
मेरा इश्क सूफ़ियाना कहूँ तो कुछ भी ज्यादा नही
कैलाश सिंह
सतना , मध्य प्रदेश