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6 Feb 2024 · 1 min read

मेरा आशियाना

निकला जाता हूं अक्सर
घर से कहीं दूर दिल को बहलाने को

कुछ पल सूकून के पाने को

दुनिया भर के झंझटों से आजाद हो जाने को

बेफिक्र परिंदा बन आकाश की

ऊंचाइयों में उड़ जाने को …

शाम होते ही लौट आता हूं अपने

आशियाने को, सादे भोजन से तृप्ति पाता हूं

रख कर सिर लुढ़क जाता हूं खटिया पर रखे सिरहाने पर

शायद भटक -भटक कर थक जाता हूं

और समझ जाता हूं अपने आशियाने और

अपनों के जैसा अपनत्व कहीं नहीं जमाने में

लाखों की भीड़ है ज़माने में बहुत कुछ आकर्षक

है देखने को दिल बहलाने को

किन्तु अपनों के जैसा अपनत्व नहीं जमाने में

मुझे मेरे अपने मिलते हैं मेरे आशियाने में

खट्टी मीठी एहसास कराने को संरक्षण पाने को ।

Language: Hindi
121 Views
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