मेनाद
शार्दूल विक्रम सिंह छोटे से रियसत शेरपुर के राजा थे उनकी रियासत आजादी के बाद समाप्त हो चुकी थी प्रिवीपर्स भी समाप्त हो चुकी थी ।
भारत कि स्वतंत्रता के बाद छोटी बड़ी रियासतो के भारतीय गणराज्य में विलय एव प्रिबीपर्स के समाप्त होने के बाद कुछ रियासतो कि पीढ़ियों ने रसजनीति के तरफ रुख कर लिया कुछ ने उद्योग एव व्यवसाय को रुख कर लिया जिसने कोई भविष्य हेतु योजना नही निर्धारित किया उनकी पीढियां जमीन जायदाद जो रियासत के जमाने की बची उन्हें बेचते जाते राजशाही शान के लिए।।
शार्दूल विक्रम सिंह ने अपने भावी पीढयों के लिए ना तो राजनीति का रास्ता चुना ना व्यवसाय का उन्होंने अपने रियासत के समय कि बची खुची जमीन को ही अपने रियासती रुतबे कोबरकरार रखने के लिए आवश्यक समझा।
खेती बारी का ही रास्ता अख्तियार किया और अपने बचे हुए जमीन में व्यवसायिक खेती को तरजीह देने लगे एक तरह से उन्होंने व्यवसायिक खेती की शुरुआत कि शार्दूल विक्रम सिंह शांति प्रिय और झंझट ववालो से दूर रहना ही पसंद करते थे।
उन्होंने वैज्ञानिक आधुनिक व्यवसायिक खेती के लिए सरकारी संस्थाओं के सुझाव और मार्गदर्शन को तरजीह दिया औऱ साथ ही साथ सौ एकड़ का बाग विकसित किया जिसमें आम, लीची ,आंवला, नींबू आदि के पेड़ थे जिससे उनकी अच्छी खासी आमदनी हो जाती कृषी आधारित छोटे उद्योग राइस मिल ,स्पेलर तेल मिल ,दाल मिल एव मछली ,मधुमख्खी पालन आदि को भी स्थापित किया जिसके माध्यम से उन्होंने बहुत लोंगो को रोजगार दे रखा था।
साल में लाखों रुपये गन्ने से के
कहा जाय तो राजा शार्दूल विक्रम सिंह ने अच्छा खासा व्यवसायिक कृषि का साम्राज्य खड़ा कर रखा था मौसम की मार कुदरत के लाख कहर के बाद भी शार्दूल विक्रम सिंह कि आय पर कोई खास फर्क नही पड़ता।
शार्दूल विक्रम सिंह के मैनेजर या मुनीम या मंत्री जो कह लीजिए मनसुख सिंह थे महारानी काव्या शार्दूल सिंह कि धर्म पत्नी भी पढ़ी लिखी शौम्य महिला थी शार्दूल विक्रम सिंह और उनकी मुलाकात अक्सफ़ोर्ट में पढ़ते समय हुई थी
शार्दूल विक्रम सिंह खुशमिजाज व्यक्ति थे कभी भी किंतनी भी समस्याएं हो कभी विचलित नही होते और वेवाकि के लिये मशहूर थे।
मनसुख सिंह का काम था शार्दूल सिंह जो बोले उसी को सही कहना चाहे वह स्वंय देख रहा हो कि ठाकुर शार्दूल सिंह गलत बोल रहे है कभी कभी शार्दूल सिंह कहते भी कस हो मनसुख हमरे हाँ में हां मिलावत भगवानों से डर नाही लागत ।
मनसुख कहता मालिक नमक के रिवाज है वफादारी शार्दूल सिंह को पता था कि मनसुख काव्या का ज्यादे वफादार है कभी कभी कहते भी की मनसुख तुम पर हम कैसे अँधाविश्वास करी तू त ससुरा काव्या का मुखबिर है।
इलाके के सभी बड़े छोटे लोग अपने यहां मरनी करनी में शार्दूल सिंह कि उपस्थिति को अपना भाग्य मानते रमई शार्दूल सिंह का दूसरा भक्त था जो लगभग प्रतिदिन राजा साहब के दरबार मे हाजिरी लगाता शार्दूल सिंह भी उसकी बहुत इज़्ज़त करते क्योकि उसके बाप दादे पीढ़ियों से उनके परिवार के प्रति वफादार रहते हुए सेवा करते आ रहे थे ।
बहुत दिनों से रमई उनकी सेवा में हाजिर नही हुआ उन्होंने मनसुख से पूंछा मनसुख बिना जाने सुने बोल उठा मालिक रमई अपने समधियाने गया है अभी मनसुख ने अपनी बात खत्म ही की थी कि रमई की बीबी इमरीति आ धमकी और रोते विलखते बोली राजा साहब –
फगुआ हमार पड़ोसी के खसि गायब होई गवा उ कुड़वा के बापू से बोला चलो सोखा की यहा चला जाय ऊहे बताई कि खसि
गायब कैसे भइल और के चोराये बा आज सुबहै आई के फगुआ बताएंन की सोखा मदारन बताएंन कि खसि इहे चुराएं है जो तोहरे साथे आये है रमाई त हम पुलिस में नालिस कारीक़े रमई का हवालात में बंद कराई दिहे है ।
हम त मॉलिक खून के आंसू रोआत हैं का करी हमारे गहरी
घरे चूल्हा नही जरेल कुड़वा भूखे रोआत बिलबिलात बा राजा साहब मनसुख की तरफ आंख तरेर के देखेंन मनसुख कांपे लाग बोला मॉलिक फगुआ का खसि आपके चेला चप्पड़ दुई दिन पहिले खोलवाई के दावत उड़ाई गैन हम सोचा कि आपको पता होए त अपने चेलन के खाल उतार देबे मॉलिक हम ई का जानत रहे कि फगुए सारा फसाद खड़ा करी दिहे ई ससुरा खसि गायब होए में सोखा कहाँ से आय गवा जेके अपने बारे में होशे नाही देश भरें का ठिका लिहे बा खैर मॉलिक इमिरीतिया के #खून क आंसू रोवत# देख के हमरो कारेजा पसीज गा एकरे आ आँखिन से जलधारा नाही बदुआ दर्द के खून के धारा बही रहा है अब आपे कौनो निर्णय करी।
शार्दूल विक्रम सिंह बहुत गम्भीरता के साथ इमिरीतिया और मनसुख के बातों को सुना और मनसुख से बोले जा रमन्ना को बुलाये और इमिरीतिया से बोले ते घर जो साम तक रमई घर आ जाये।
मनसुख ने तुरंत रमन्ना
को राजा शार्दूल विक्रम सिंह के हुजूर में पेश किया रमन्ना को देखते हुये शार्दूल विक्रम सिंह ने बहुत गुस्से से कहा रमन्ना तुम लोंगो को हमने इस लिए नही पाला है कि तुम लोग किसी गरीब को परेशान करों फगुआ बकरी पालते है उनकी कमाई होती है तुम लोंगो ने उसका खसि चुरा कर आपस मे ही दावत कर लिया यह बात किसी भी तरह से नाकाबिले वार्दस्त है ।
फगुवा खसि चोरी के चोर पता करें खातिर रमाईया को साथे लेके सोखा की यहॉ गया सोखा रमईये के बता दिया कि खसि इहे ले गवा बा नतीज़ा फगुवा रमाईया का खसि चोरी के नालिस कारीक़े हवालात में बंद कराई दिहे बा रमाईया कि मेहरारू खून के आंसू रोअति बा तोहन पचन मजाक सूझे बा रमन्ना आश्चर्य से बोला राजा साहब सोखा मदारन त हम लोगन के दावत में शरीक रहा ओ ऊ हम सब अपने के बचावे खातिर रमईये के फंसा दिहिस राजा साहब हम बहुत शर्मिंदा बानी कबो अब भविष्य में यह तरह के गलती न होई ये मामले को निपटाई दे हुजूर ठाकुर शार्दूल सिंह जी बोले तुरंत फगुवा के बोलाई के लाव रमन्ना बिना बिलम्ब किये फगुआ के धरि लायेंन ।
फगुआ को देखते ही राजा शार्दूल सिंह बोले तुम्हरा खसि गायब है वोका कीमत का रहा फगुआ बोला मॉलिक बीस हज़ार राजा शार्दुल विक्रम सिंह ने रमन्ना
की तरफ क्रोध भरी नजरों से देखा जो हाथ जोड़े अपराधियों की तरह खड़ा था राजा शार्दुल सिंह ने बीस हज़ार रूपया फगुवा को दिया और बोले कि तुम अपनी नालिस वापस ले लो और रमाईया को रिहा कराओ फगुवा के खसि कि कीमत मिल गया चाहे राजा साहब दे या कोई और का फर्क पड़त ऊ गवा आपन नालिस वापस लिहा रमाई रिहा हो गया ।
राजा साहब ने सोखा और रमन्ना और उसके साथियों को बीस हज़ार पूरे होने तक अपने खेतों में काम करने का आदेश दिया।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।