में स्वयं
कल्पनओं की उड़ान बहुत ऊँची है ।
और सब्र हाथ पैर बांधे खड़ा हुआ है ।।
किस सफर को तय करूँ अब मैं।
मेरा हमसफ़र खुद रूठा पड़ा है ।।
आवाजें आती है मुझे अब भी उसकी ।
जो शक्स बरसों से शांत बैठा हुआ है ।।
क्या करूँ मैं अब तुम ही बताओ कुछ ।
सब किया कराया धरा पड़ा है ।।
तन्हाईयो ने भी अब तो तोड़ दिया मुझसे नाता ।
और ये देखो खुशियों का कारवां मुझपर हँस रहा हैं ।I
दर दर की ठोकरें खाता हूं अब मैं।
मेरे दर ने कब का दर बदर कर दिया है ।।
चलो किस्मत पर कुछ दिन और यकीन कर लेता हूं ।
शायद मेरी क़िस्मत का सिक्का कहीं गिर गया है ।।