****में सोचने पर मजबूर हूँ ****
मैं सोचने पर मजबूर हूँ,
कि जमाना कहाँ जा रहा है
घर घर में भाई भाई को अब खा रहा है
रूख सब का बदल रहा है
रिश्तों को न जाने कौन डस रहा है !!
कुछ शंका में गुजर गए
कुछ को लोगो ने उजाड़ दिया
माँ ने प्रेमी के संग मिलकर
अब अपनी बेटी का बलात्कार करवा दिया !!
कैसा यह जनून है
प्रेम ने कर दिया अँधेरा ही अँधेरा
बीवी को लेकर अपने घर पहुंचा शोहर
सुहागरात से पहले ही उजाड़ गया सुहाग है !!
खुद ही फांसी पर झूल रहे
नहीं बस चलता तो रेल से हैं कट रहे
इंसानियत को अब आ रही शरम है
बेटो ने तो अपना पैदा करने वाला मरवा दिया !!
कैसे चलेगी दुनिया, कैसे बनेगा देश महान
युवा तो योवन के देहलीज से पहुँच रहा शमशान
आजकल के बूढें दिख रहे हैं नोजवान
युवाओं ने तो अपने हाथ से खुद को कातिल बना दिया !!
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ