में तुझे कैसे कहुं
मैं तुझे कैसे कहूं
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मैं तुझे कैसे कहूं, मुझे कुछ पता नहीं,
यादों में या कल्पना की प्रेरणा में।
बातें हैं बहुत कहने को,
पर कुछ न कहुंगी!!
खामोश तुझे बस निहारती रहुंगी,
में तुझे कैसे कहुं
मुझे कुछ पता नहीं—
या आदित्य के प्रकाश में,
सिमटकर आगोश में भर लूंगी।
या धूप में बैठी-बैठी,
तेरा पथ निहारूंगी!
पर!में चुप ही रहुंगी,
मुझे कुछ समझ आता नहीं
में तेरा इंतजार करूंगी—-
में बस इतना जानती हूं,
कि तुम मेरे हो
वक्त कि रुसवाईयां थी,
जो दूर हुए, पर तुम आज भी मेरे हो,
पर!में तुझे फिर मिलूंगी
कहां कुछ पता नहीं—–
यादों के धुंधले साए,
कायनात में लम्हे की तरह हैं–
उन लम्हों को में,
फूलों सा समेट लूंगी,
सहेज कर गुलदस्ते में सजा दूंगी,
में तुझे कुछ न कहुंगी
में चुप रहुंगी—–
सुषमा सिंह *उर्मि,,