मृत्यु शाश्वत सत्य !
मृत्यु शाश्वत सत्य !
माया भ्रम से मनुज मृत्यु को कहाँ याद रखता है,
प्रति पल प्रति छण वह धन पाने की चेष्टा करता है,
जीवन के अन्त्य छणो तक वह जीने की इच्छा रखता है,
निज संतति सुख हेतु सदा वह मन में चिंतित रहता है
लोभ, मोह, माया भ्रम, आत्मा शुद्ध न होने देते,
प्रति पल उसके विचार उसको कष्ट अधिक हैं देते,
इन्हीं कारणों से मानव की मृत्यु दुखद होती है,
इन्हीं विचारों के कारण उसको पीड़ा होती है,
अन्त्य समय में उसे पूर्ण जीवन स्मृति होती है,
अन्त्य छणो में सम्मुख उसके सभी कर्म होते हैं,
भले बुरे सब कर्मों के फल भी सम्मुख होते हैं
स्वयं मृत्यु जब सम्मुख आकर उसे निमंत्रण देती,
तक्षण धन को भूल स्वयं उसकी ये चेष्टा होती,
” काश मुझे कुछ छण का जीवन और अगर मिल जाता,
तो मेरे जीवन का अंतिम लक्षय पूर्ण हो जाता ”
इन्हीं विचारों में जब मानव लीन स्वयं होता है,
तक्षण उसके जीवन का वह काल पूर्ण होता है,
प्राण पखेरू निकल के तन से उसके उड़ जाते हैं,
अपने कहने वाले सब ही लोग बिछुड़ जाते हैं
इसी क्रिया को दुनियां के सब लोग मृत्यु कहते हैं
और इसे मानव जीवन के समाप्ति की संज्ञा देते हैं !!!