मृत्यु भोज (#मैथिली_कविता)
शोकाकूल समुच्चा परिवार छै,
गामक लोक भोज जगल कहैत छै,
मैञ्जन भरि खपकटी आ सभा पर जोड दै छै ,
मुदा शोकाकूलजन भोजक पक्षमे नय छै,
तईयो ग्रामिण ठोंठ मोकैत छै,
बाध्य बनाके मृत्युभोज लैत छै ।
भोजक लेल मोंछ पिजेने लोक छै,
प्रियजनके वियोगमे तडपैत परिवारक गम ककरो नय छै,
अकालमे निधन भेलके सेहो भोज अनिवार्य छै,
तईं डलना, बैकुंठी, खटमिठ्ठीक हिसाब शुरुए दिनसँ होइ छै,
पुर्खाके अर्जल सम्पत्तिसँ अन्न दानक बात समाज करै छै,
मृत्तकके बैकुंठ बास होइत कहैत मृत्यु भोज मगैत छै ।।
समाजक करचापमे बाध्य शोकाकूलजन छै,
ओकरा घरमे अन्न आ धन नय छै,
हसामी बनल बिचारा कर्जाक बोझसं कुब्बर भ जाई छै,
वर्षौधरि मुडि उठेबाक होश परा दै छै,
परदेश कमाके ऋण सधबैत तवाह रहै छै,
मृत्यु भोजमे खर्चाक कारण संतानक शिक्षा छुइट जाई छै ।।।
#दिनेश यादव
काठमाडौं (नेपाल)