***मृत्यु का प्रतिबिम्ब था वह**
***कोरोना काल का समय***
संवेदना थी,
मर्म था,
छिपा कोई कर्म था,
नेह के नाते,
द्वेष के संग
किसी ने,
ग़ैर छोड़ा,
गुलाम थे,
आज़ाद भी थे,
उन क्षणों में,
कुछ संस्कार भी थे,
कोई एहसान,
था वह,
थी लपट वह,
अग्नि की,
रेंगता कोई प्रेत,
था वह।
मृत्यु का प्रतिबिम्ब,
था वह।
@अभिषेक पाराशर