मुहिम
मुहिम
कैसे हो पारसजी ?कहते हूँए विमलजी बंगलो की सोसायटी में बने गार्डन की बेंच पर बैठकर बातें करने लगे।
“आज जल्दी ऑफिस से … ?”
“आपको तो पता है बगल में मेरे भाई का लड़का जो अमरीका में है उसका नया मकान बन रहा है, तो जल्दी आकर थोड़ी निगरानी रख लेता हूँ ,ओर आप बताईये ….अरे ,ये यंग बच्चे वॉलीबॉल खेलने की बजाय अपना सर मोबाईल के सामने ज़ुकाये क्यों बैठे है ?” बगल में बैठे नवयुवको को देख विमल जी बोले।
“अब क्या कहे ?कुछ कहेंगे तो हमें कह देंगे ‘अंकल आपको ये मोबाईल की दुनिया समज़ नहीं आएगी। ”
विमलजी ने एक गहरी सांस ली और थोड़ा नज़दीक जाकर पारसजी को कहने लगे ,
“पारसजी मेरा बेटा और बहूँ तो बेटी के साथ अमरीका हमारी ऑफिस हेंडल कर रहे है और अपने हाईस्कूल पढ़ते बेटे को मेरी निगरानी में रख छोड़ा है ,वैसे तो मेरा पोता विकल बहूत होनहार है और मेरा भी बहोत ध्यान रखता है ,लेकिन इन दिनों मै थोड़ी दुविधा में पड़ गया हूँ। ”
“बेजिज़क बताइये ,दिल का बोज़ थोड़ा कम हो जायें।”
“मैं अपनी ऑफिस में काफी कमप्युटर वर्क कर लेता हूँ ,आज मैंने अर्जन्ट एक इ-मेल करनी थी तो घर आकर विकल का कम्प्यूटर इस्तेमाल करने के लिए खोला , उसमे काफी बीभत्स प्रकार के वेबसाइट और अपने फ्रेंड्स के साथ शेर किये हुए फोटोज़ वगैरह देखे और मेरा सर चकरा गया ।बुरी संगत में कहींसे सीखकर लाते है,उसने जल्दी में कमप्युटर खुला छोड़ दिया था ।”
“ओहह् ,ये तो बहोत गंभीर बात है ”
“मैंने स्कुल के पेरंट्स एसोसिएशन को सूचित किया है ओर किसी को भी पता न चले इस तरह से सायबर क्राइम को संपर्क किया।अब मैं चाहता हूँ की हमारे साथ आप बाक़ी के मित्रो को भी जोड़े ।सबसे पहले हम बच्चो को अच्छे साहित्य की और मोड़ने के प्रयास करेंगे।”
“जरूर ,ये तो बहोत ही आवश्यक मुहिम छेड़ी है आपने ,में अभी अपने बाकी मित्रो को भी सूचित करता हूँ ,अब आप इस लड़ाई में अकेले नहीं हो।”
और …विमलजी की आँखों में ख़ुशी की चमक आ गयी।
-मनीषा जोबन देसाई