मुस्कान
कब
बीत गया
बचपन
होठों पर
लिए मुस्कान
न चिंता
न ख्वाईशें
खाते पीते
खेलते कूदते
बस
बीत गया
प्यारा सा
बचपन
हुए बड़े
हुआ सब कुछ
तमाम
नौकरी चाकरी
घर गृहस्थी
चक्की चूल्ह
गुम हो गयी
होठों की
मुस्कान
थामा दामन
बुढ़ापे ने
हुई असली
परीक्षा
बच्चों की
निभाया तो
ठीक
नहीं तो
भेजा
वृद्धाश्रम
अब गयी
होठों की
मुस्कान
देखते जब
फोटो पुराने
बस लौट आती
होठों की
मुस्कान
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल