मुसाफ़िर सब ,मन्ज़िल एक आख़िर किस बात का ग़ुरूर है तुम्हें ऐ मुसाफ़िर कभी ज़मीं देखों आसमां देखों देखों हाथ ख़ाली… __अजय “अग्यार