मुसाफिर
हम तो है मुसाफिर न घर है न ठिकाना ।
मुफलिस हैं मगर सब कहते हैं दिवाना ।।
मिला जो राह में हम उसके हो लिए ।
गम मिला तो रोए खुशियों में हॅस लिए ।
हम नहीं किसी के मेरा यार है जमाना ।।
समंदर की लहरों सा नदी का किनारा हूँ ।
रुका नहीं मैं पलभर टूटा हुआ सितारा हूँ ।
मंदिर और मस्जिदों में रोज़ आना जाना है ।।
न मजहब है कोई न जात पात से वास्ता ।
इंसानियत है मुझमें बस इंसान से है वास्ता ।
जिंदगी है बुलबुला क्या खर्च क्या कमाना ।।
उमेश मेहरा
गाडरवारा (मध्य प्रदेश )
9479611151