मुसाफ़िर हूं यारों
मुसाफ़िर हूं यारों_______✍️
जिंदगी के कारवां से भटका एक मुसाफ़िर हूं यारो,
हौसलों को लगा कर पंख अभी उड़ना बहुत आगे है ,
ये मत समझना एक अरसे से थका पथ का पथिक हूं यारों,
जिंदगी का कारवां आगे निकल गया तो क्या हुआ, मै तितली सा उन्मुक्त गगन में उड़ता अमिट खुशियों का सौदागर हूं यारों ,
परवाज़ हमारी देखनी है तो कारवां के साथ नहीं , कुछ पल हमारे पास तो ठहरों यारों,
कारवां से भटका हूं “संदीप” मंजिल से नहीं एक दिन ये रास्ते खुद गले लगा लेंगे, आगे खुला आसमां है यारों।।
__________स्वरचित_____
संदीप गौड़ राजपूत_________✍️