मुश्किल से ये रंग बदलना सीखा है
तुमने छोड़ा हाथ तो चलना सीखा है
ठोकर खाकर आज सँभलना सीखा है
चाटुकारिता की अद्भुत चिकनाई में
अब जाकर के यार फिसलना सीखा है
पत्थरदिल की संज्ञा दी जब से तुमने
घिस- घिसकर के खुद को जलना सीखा है
गिरना – पड़ना सीखा गाँव की मिट्टी में
चाँद देख के हमने उछलना सीखा है
निर्दोषों का खून लगा जब माथे पर
तब जाकर हाथों को मलना सीखा है
अब न करो उम्मीद किसी परिवर्तन की
मुश्किल से ये रंग बदलना सीखा है