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18 Mar 2020 · 1 min read

मुश्किल से ये रंग बदलना सीखा है

तुमने छोड़ा हाथ तो चलना सीखा है
ठोकर खाकर आज सँभलना सीखा है

चाटुकारिता की अद्भुत चिकनाई में
अब जाकर के यार फिसलना सीखा है

पत्थरदिल की संज्ञा दी जब से तुमने
घिस- घिसकर के खुद को जलना सीखा है

गिरना – पड़ना सीखा गाँव की मिट्टी में
चाँद देख के हमने उछलना सीखा है

निर्दोषों का खून लगा जब माथे पर
तब जाकर हाथों को मलना सीखा है

अब न करो उम्मीद किसी परिवर्तन की
मुश्किल से ये रंग बदलना सीखा है

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