मुल्क़ में अम्नो-चैन लाना है
———ग़ज़ल——-
2122-1212–22
1-
ज़िन्दगी भर ये ग़म उठाना है
दर्द सहकर के मुस्कुराना है
2-
ज़ुस्तज़ू में तूम्हारी ऐ दिलबर
ठोकरें कब तलक ये खाना है
3-
कर लिया है अहद यही मैंने
प्यार का दीप ही जलाना है
4-
ऐसी ताक़त तू दे मुझे मौला
चाँद के पार हमको जाना है
5-
ख़त्म कर ज़ुल्म की हुकूमत को
मुल्क़ में अम्नो-चैन लाना है
6-
आदमी कुछ नहीं है दुनिया में
मौत का इक लज़ीज़ खाना है
7-
फूल गुलशन में फिर से महकेंगे
आज उनको जो मिलने आना है
8-
कल तो आबाद थी यहाँ बस्ती
आज ख़ब्बीस का ठिकाना है
9-
ज़िन्दगी बेवफ़ा हुई “प्रीतम”
मौत को अब गले लगाना है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)