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22 May 2024 · 1 min read

मुर्दा यह शाम हुई

मुर्दा यह शाम हुई
उखड़े से लगते हैं लोग
टूटा टूटा सा परिवेश
बर्फ हुआ जाता आवेश
हिचकी सी लेती उपभोग
चौराहे पर अपनी धड़कन नीलाम हुई
बारूदी गंध अब झांकती
खिड़की से
कांपती निशा
हांफ हांफ जाती दिशा
बेचैनी अंबर को ताकती
जंग लगी चिंतन में
यात्रा यह जाम हुई
टूट-टूट श्रृंखला बिखरती
सिटी से बचती है कानों में
इस बीहड़ जंगल में
मैदानों में
अस्त-व्यस्त भावना विचरती,
चलती रहने वाली
जिंदगी विराम हुई
मुर्दा यह शाम हुई।।
: राकेश देवडे़ बिरसावादी

Language: Hindi
23 Views
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