“मुनिया”
वह आज थोड़ी उदास थी।पापा ने बड़ा सा नया घर खरीदा था।सब खुश थे भईया, मम्मी, पापा यहाँ तक की दादी भी! पर कोई खुश न था तो वो तो बस मुनिया ही थी। तीन साल की अभी-अभी तो हुई थी कहाँ समझ पाती थी कुछ ,बोलना भी तो अब जाके आया था।आस-पास का जाना-पहचाना माहौल छूट रहा था कैसे खुश होती। उसे पँछीयों से बड़ा लगाव था जब भी उन्हें देखती चहक उठती उसे हमेशा ऐसा लगता था कि ये सारे पंछी बस उसी के लिए ही धरती पर आये हैं।उन्हें अपना खिलौना समझती थी। सोच रही थी नये घर में कोई न मिला तो? वहाँ पता नही कोई पेड़ भी है की नही? यहाँ तो कितने ही पेड़ और ढ़ेर सारे पंछी!
नया घर पाँचवी मँजिल पर था बहुत बड़ा।अगल-बगल कोई पेड़ न था जो थे वो दूर थे। मुनिया यह देखकर और ज्यादा उदास हो गई। किसी को उसकी चिंता न थी सब अपने में व्यस्त थे। बालकनी में झाँकना चाहा तो मम्मी ने हाथ पकड़कर अंदर बिठा दिया”झाँको मत गिर जाओगी” कहकर। क्या करती बैठकर सब को काम करते हुए देख रही थी वो कुछ कर भी तो नही सकती थी।उसने सोचा मैं सबकी मदद भी तो नही कर सकती मैं छोटी हूँ ना!
घर को सेट करने में सबका पूरा दिन निकल गया।सब थक गये रात हो चली थी सब सोने चले गये। मम्मी ने मुनिया को खाना खिलाकर बिस्तर में सुलाना चाहा पर वो कहाँ सोने वाली थी दादी से लोरी सुनने की जिद करने लगी मम्मी ने डाँट दिया।दादी थककर सो गई थी मम्मी ने कहा” सो जाओ परेशान मत करो”।वो चुपचाप सोने का नाटक करने लगी, आँखों में आज नींद न थी।छोटी सी जान को अपने पीछे छोड़ आई पंछीयों की चिंता थी अब उन्हें कौन दाना देगा? पुछना चाहती थी दादी से, पापा से पर उन्हें समय ही नही मिल पाया उसके पास बैठने का और मम्मी ,भईया तो उसकी बात पर गौर ही कहाँ करते थे।उस नन्ही का मन पंछीयों मेंअटका था घरवाले क्या जानते उसकी चाहत का मोल।कब सो गई पता भी न चला। (क्रमशः)
#सरितासृजना