मुझे मुझसे हीं अब मांगती है, गुजरे लम्हों की रुसवाईयाँ।
सर्द आसमां में दिखती हैं, अधूरे चाँद की अंगड़ाईयाँ,
टूटे तारों में बसती हैं, ठहरे मन्नतों की गहराईयां।
अक्स सुलझा नहीं पाती हैं, खुद से पूछती अबूझ पहेलियाँ,
ताँ उम्र किस्मत को ढूंढती हैं, सहमी लकीरों से भरी हथेलियाँ।
मुस्कराहट में छिपी मिलती है, दर्द की कहानियाँ,
कोरे आँखों में तैरती हैं, जख्मी शब्दों की बेजुबानियाँ।
रात साँसों में घुलती है और, यादें लेती हैं हिचकियाँ,
नींदें बेबसी में निहारती हैं, और फ़रियाद करती हैं थपकियाँ।
मोहब्बत अंधेरों से यूँ होती है, की रूठ जाती हैं परछाईयाँ,
धड़कनों में वीरानगी जागती है यूँ कि, तन्हा हो जाती हैं तन्हाईयाँ।
घर के झरोखों से झाँकती हैं, अधूरे ख्वाहिशों की पुरवाइयाँ,
मुझे मुझसे हीं अब मांगती है, गुजरे लम्हों की रुसवाईयाँ।