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5 Jun 2017 · 1 min read

मुझे बचाओ

मुझे बचाओं
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क्यों भूल गया तू हें मानव ?
मैं प्रिय धरती माता हूँ तेरी।
आज है मेंरी कोख उजडती।
कहाँ सो गयी वो प्रीत तेरी ??
मेरा स्वरूप हुआ मिटने को।
करता क्यों ? नही रक्षा मेरी।
वातानूकूलन यंत्र बंद कर।
झुलसती इससे काया है मेरी।
घर-घर बस एक वृक्ष लगा लो।
सुखद हवा बहें छाया घनेरी।
शुद्ब पर्यावरण सांस लें ग़र तू।
सुखी हो जीवन बग़िया तेरी।
नही तरसेगा किसी तरह तू।
ग़र करे हिफाज़त तू मेरी।
वृक्ष दें तुमको छाया;फल;ईंधन
इनसे क्या शत्रुता है तेरी ?
बड़े भ्राता सम रक्षा करते।
पोषित होती बगिया तेरी।
मेरी कोख़ से उपजे अन-धन।
तुमसे मेरी नही कुछ अनबन।
जल भी सारा नष्ट हो रहा।
नही बुझती मेरी क्षुधा धनेरी।
कहते हो तुम जल ही जीवन।
उधेड़ रहे क्यों मेरी सींवन।
छोड़ दें अब तू खनन -वनन सब।
पड़ती इससे विघ्न बहुतेरी।
असीम सा कम्पन कभी व्याप्त हो।
कॉपें थरथर काया मेरी।
रचो- बसो तुम आर्शी मेंरा।
बना रहने दों अस्तित्व मेरा।

सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड़

Language: Hindi
413 Views
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