मुझे जलानी है होली..
नित प्रतिदिन जन्म ले रही सामाजिक बुराई,
मुझे जलानी है होली समाज में व्याप्त बुराइयों की ।।
नहीं रुक रहे अत्याचार सामाजिक स्तर पर,
मुझे जलानी है होली उन अत्याचारों की ।।
पल-पल मरती इंसानियत इस चमन में,
मुझे जलानी है होली इस निर्दयी गुलशन की ।।
फ़ैल रहा है जातिवाद समाज में ज़हरीली हवा की तरह,
मुझे जलानी है होली उस जातिवाद की ।।
हो रहे हैं बलात्कार दिन-प्रतिदिन बहन-बेटियों के,
मुझे जलानी है होली इन बलात्कारियों की ।।
फ़ैली है अशिक्षा समाज में बीमारी की तरह,
मुझे जलानी है होली अशिक्षा की ।।
हर व्यक्ति यहाँ पर चढ़ता है सीढ़ी विकास की भ्रष्टाचार से,
मुझे जलानी है होली इस पापी भ्रष्टाचार की ।।
दो दिन जीवित बचती नहीं नव- बधू ससुराल में,
मुझे जलानी है होली उन दहेज-लोभियों की ।।
हफ़्ते में दो दिन भूखी धनिया सो जाती है,
मुझे जलानी है होली उस भुखमरी की ।।
पढ़लिखकर घर बैठे हैं लाखों बेरोजगार यहाँ,
मुझे जलानी है होली उस बेरोज़गारी की ।।
“आघात” नहीं है क्यूँ दिलचस्पी होली तुझे मनाने की,
मुझे जलानी है होली सामाजिक बुराइयों की ।।
आर एस बौद्ध “आघात”
अलीगढ़