मुझे छेड़ो ना इस तरह
मुझे छेड़ो ना इस तरह, कि कुछ करने पर मजबूर हो जाऊ
तेरे इश्क की दरिया में, तैरने पे मजबूर हो जाऊ
तेरे गुलाब की खुशबू का, अंदाजा नहीं है तुझे
इस तरह ना खिलो, कि तोड़ने पर मजबूर हो जाऊ।
तेरे दिल में क्या है, सब तेरे लवों पे छलकता है
तेरी आंखों में क्या देखू, सब तेरी आंखों में झलकता है
जहां भी आ जाओ, समां बंध जाए
तुम कोन सी दुनिया हो, जहां हर कोई बहकता ही बहकता है।
तुमसे मतलब निकालू, ये गुस्ताखी मुझे मंजूर नही
मैं सजा दू तुम्हें, ये बादशाही मुझे मंजूर नही
तेरे पिंजरे में कैद,परिंदा हु मै
गर उर गया, तो लौटना मंजूर नही।
✍️ बसंत भगवान राय