मुखर मौन
मेरे शब्दों के मुखर मौन को।
तुम न समझो तो समझेगा कौन।
मेरी असहय वेदना की ब्यापकता।
तुम न समझो, तो समझेगा कौन।
हाथ पकड़ कर जीवन पथ पर!
तुमने ही सिखलाया था चलना।
गिर के उठना, उठ के गिरना।
उठना, गिरना और संभलना।
तुम न समझो तो समझेगा कौन।
जीवन की ये सुन्दर मृगतृष्णा।
करती है दौड़ लगाने को प्रेरित ।
हर हार हैं देती शक्ति नई।
मन के इस अनुपम दर्शन को
तुम न समझो तो समझेगा कौन।।
अहंकार की परिभाषा का विश्लेषण।
जीवन की नश्वरता का ये गुण।
परिवर्तन की अविरल धारा को।
तुम न समझो तो समझेगा कौन।।
जयप्रकाश श्रीवास्तव पूनम