मुक्ति
गुलामी का भयंकर दौर भारतीय गुलामी के दहशत में खोए आत्म विश्वास को तलाशने के महायज्ञ में अपना प्रायास प्राण पण से कर रहे थे कभी उन्हें आजादी के मिलने का एहसास होता तो कभी भविष्य अंधेरे के गर्त में कही खो जाता ।
आंध्र प्रदेश के जंगलो में आदिवासियों कि ही बाहुल्यता थी उस दौर में परिवहन सुविधाओं का विकास इतना नही हुआ था आम परिवहन में घोड़ा बैलगाड़ी ही था ।
आंध्र के चित्तूर नेल्लूर कोड़प्पा शेषाचलम जंगलो के लिए मशहूर है वर्तमान में बहुत विकास हो चुका है परिवहन सांचार सुरक्षा शिक्षा स्वास्थ आदि का बहुत विकास हो चुका है ।
गुलामी के दौर में ये जंगल मूक राष्ट्र कि गुलामी एव माँ भारती कि वेदना को बयां करते जंगलो के मध्य आदिवासी जन जातियों के ही जंगलो के बीच बीच गांव कहे या बस्तियां थी जो कबीलाई संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते ।
भारतीय कबिलियाई संस्कृति एव मध्य रेगिस्तान देशों कि
कबिलियाई संस्कृति एव समाज के प्रबृत्ति एव चरित्र एवं सातवी सदी में कबिलियाई संस्कृति कि कोख से जन्मे इस्लामिक समाज जहाँ आक्रामक एव धर्मांधता क्रूरता के रूढ़िवादी सिंद्धान्तों को ही ईश्वर के सिंद्धान्त के रूप में स्वीकार करता तो जिसके कारण उनकी उग्रता के उत्साह एव विध्वंसक आचरण से विशेषकर भारत बहुत प्रभवित हुआ।
भारतीय आदिवासी कबिलियाई संस्कृति कुछ सीमित रूढ़ वादी परम्पराओ के साथ शौम्य एव मानवीय थे और आज भी है भारतीय जन जातियों ने संगठित होकर माँ भारती को गुलामी से मुक्त कराने के लिए विद्रोह एव संघर्ष का रास्ता अख्तियार किया किंतु कभी भी राज सत्ता कि आकांक्षा को नही पाला ना ही अंतर्मन में जन्म लेने दिया इसीलिए भारत मे निवास करने वाले जन जातीय कबिलियाई कभी उग्र या उग्रता को नही पसंद किया यह भारत कि उच्च परम्पराओ का ही प्रतिबिंब बनकर प्रतिनिधित्व करते रहे।
आंध्र के जंगलो में आज भी कुछ नवजवान राष्ट्र कि मुख्य धारा से भटके समानता का छद्म संघर्ष करते रहते है विश्वास है कि बहुत शीघ्र उन्हें भारत के मौलीक सिंद्धान्तों कि समझ दृष्टगत बहुत स्प्ष्ट होगी एव जिस प्रकार कभी चंबल दुर्दान्त आतंक का पर्याय था आज वहाँ विकास शांति कि धारा का प्रवाह निरंतर बह रहा है तो मानवीय संवेदनाओं के मधुर झोंको से समूर्ण चंबल गौरवान्वित हो नई राह पर निकल राष्ट्र के साथ कदम ताल कर रहा है जो वर्तमान पीढ़ी के लिए एव भविष्य के लिए शुभ एव मंगलकारी है सर्वोदय नेता जयप्रकाश नारायण जी ने जब इस अभियान कि शुरुआत चंबल से की थी तब उन्हें इस सुखद भविष्य कि कल्पना थी जो आज कि पीढ़ी प्रत्यक्ष देख रही है।
चंबल के ही तर्ज पर मैं बहुत विश्वास के साथ कह सकता हूँ की जो भारतीय नौजवान भटक कर स्वयं एव स्वंय के समाज समय को समझने में भूल कर रहे है बहुत जल्द उन्हें सच्चाई का आभास होगा हो रहा है और भारत पुनः अपने गौरवशाली अतीत को प्राप्त करते हुए अपनी युवा ओज तेज कि शक्ति के साथ अत्यधिक सबल सक्षम सबल होकर एक नए युग दौर की वास्तविकता के निर्माण को अग्रसर होगा।
यह भवना स्प्ष्ट करना उन्नीस सौ पैंतीस के दौर की उस सच्चाई के यादों के दर्पण में देखा जाना चाहिए जून का महीना भयंकर गर्मी अंग्रेज हाकिम मार्टिन घोड़े पर सवार कुछ सैनिकों के साथ शेषाचलम आंध्र के जंगलो में घूमने निकले दिन भर घूमने फिरने के बाद जहाँ शाम होती वही कैम्प लगाकर रात्रि विश्राम करते मार्टिन के साथ पच्चीस तीस लोग साथ थे जिसमें पंद्रह बीस सैनिक एव दो घोड़ो कि देख रेख के लिये एव दो खाना आदि के लिए इतने ही सेवा के लिए मार्टिन मूलतः ब्रिटेन के निवासी थे उन्हें ब्रिटिश सरकार ने मध्यप्रदेश में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे रखी थी उन दिनों मार्टिन भारत के आदिवासी संस्कृति पर जानकारी हासिल करने के लिए जब भी वक्त मिलता अपने लाव लश्कर के साथ निकल पड़ते इसी अभियान के अंतर्गत वह निकले थे और शेषाचलम के जंगलो के पास कुन्नूर जनपद के पास उन्होंने डेरा डाल रखा था।
मार्टिन अपने कैम्प में निश्चिन्त भाव से सो रहे थे और उनके सुरक्षा में लगे कर्मी अपने अपने पाली अनुसार ड्यूटी पर मुस्तैद थे रात्रि लगभग डेढ़ दो बजे बाल्मीकि आदिवासी जन जातियों समूह के नौजवान अंग्रेज अफसर पर हमले कि नियत से लगभग पचास कि संख्या में आये और अंग्रेज हाकिम के कैम्प को घेर लिया उनकी सुरक्षा में लगे सुरक्षा कर्मियों को बंदी बना लिया कुछ नौजवानों ने मशाल लेकर मार्टिन पर आक्रमण करना चाहा।
मार्टिन स्वतः वैचारिक रूप से उपनिवेशवाद के विरोधी थे अतः उन्होंने बड़े संयम से काम लेते हुए कैम्प से बाहर निकले और द्विभाषिए को पास बुलाया और बोलना शुरू किया नौजवानों किसी भी राष्ट्र एव समाज राष्ट्र का वर्तमान एव भविष्य उसके नौजवानों पर ही निर्भर होता है नौजवान ही राष्ट्र एव समाज के बुनियादी ढांचे के निर्माण एव उस पर नए ऊंचाई उपलब्धियों के राष्ट्र समाज के निर्माण कि जिम्मेदारी होती है ।
जिसके लिये उंसे वास्तविकता के वक्त में स्वंय को जानना पहचाना होता है तुम सभी आदिवासी युवा हो बहुत विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन को प्रसन्नता के साथ जीते हो एव स्वीकार करते हो तुम स्वंय में भारतीय समाज के लिए अनुकरणीय उदाहरण हो परिस्थियां चाहे कितनी विपरीत हो जीवन कि मुस्कान को आप लांगो ने कभी नही छोड़ा।
आप लोग भारत कि स्वतंत्रता के वास्ततिक सिपाही हो और स्वतंत्रता आपका अधिकार है जो मिलना ही चाहिए लेकिन मैं ब्रिटिश हुकूमत का मुलाजिम ब्रिटिश हूँ और ये मेरे साथ सभी भारतीय हैं कि बर्बर हत्या से तुम्हे आजादी मिलती हो तो अवश्य मुझे एव मेरे साथ आये सहयोगियों को मारो लेकिन ना तो यह स्वतंत्रता की लड़ाई है ना ही यह स्वतंत्रता के उत्तराधिकारी को निर्धारित करती है यह तो कायराना अपराध है जो ना तो बीरों को शोभा देता ना ही स्वतंत्रता के लिए लड़ते सिपाहियों के लिए यह तो डांकुओ कि तरह अमानवीय कृत्य है इस समय आप सभी ठीक उसी बिल्ली की तरह है जिसके विषय मे भारत मे कहावत मशहूर है #बिल्ली और दूध कि रखवाली# यदि आपको आजादी दे दी जाए तब भी आप अपनी आजादी को इस प्रकार कि कायराना हरकतों से स्वंय समाप्त कर दोगे ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार बिल्ली को दूध कि रखवाली दे दी जाय तो वह स्वंय ही दूध पी जाएगी अतः आप आदिशक्ति के आदि पुरुष के नौजवानों अपने राष्ट्र समाज संस्कृति के लिये सार्थक परिणाम परक कार्य करिए जो स्वतंत्रता के अधिकार कि योग्यता और शक्ति के लिए संकल्पित करेगी को प्राप्त करो एवं उसी रास्ते चलो।
मार्टिन की बात आदिवासी नौजवान बड़े ध्यान से सुन रहे थे उनका मुखिया गौरा ने सभी आदिवासी नौजवानों से मार्टिन की बात को स्वीकार करने के लिए आग्रह किया एक स्वर से सभी गौरा के साथ सहमति व्यक्त किया और सभी लौट गए ।
सन सैंतालीस में जब भारत आजाद हुआ तब मार्टिन ब्रिटेन से भारत आये थे विषेकर वह पुनः उन नवजवानों से मिलने की मानसा से शेषाचलम के जंगलो कुन्नूर के उसी जगह गए जहां तेरह वर्ष पूर्व आदिवासी नौजवानों से मुलाकात हुई थी गौरा ने मार्टिन का बहुत स्वागत किया और अपने पुराने दोस्तों को एकत्र कर मार्टिन से पूछा क्या हम
लोग स्वतंत्रता के योग्य हो चुके है कि अब भी #बिल्ली कि रखवाली दूध# कि तरह है जो अपने जिम्मेदारी को स्वंय ही निगल जाती है ।
मार्टिन बहुत तेज हँसते हुए बोले आप लोग भारत के वास्ततिक शक्ति है यह आने वाले भविष्य के भारत को जाननी होगी एव आप लोगो को अपनी जिम्मीदारियो का स्प्ष्ट निर्वहन बिना संसय के करना होगा वातावरण बहुत खुशगवार हो गया सब ने मा भारती के जय जय कार में मार्टिन के स्वर को भी समेट लिया।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।