मुक्तक
“आइने से असलियत चेहरों की हम कैसे छुपाएँ,
दूर तुझसें मैं न ज़िन्दा, ना ही ज़िन्दा भावनाएँ,
तेरी चौखट पर न जाने कितनी की हैं मिन्नते,
सह नहीं पाता है दिल अब बेरूखी की वेदनाएँ “
“आइने से असलियत चेहरों की हम कैसे छुपाएँ,
दूर तुझसें मैं न ज़िन्दा, ना ही ज़िन्दा भावनाएँ,
तेरी चौखट पर न जाने कितनी की हैं मिन्नते,
सह नहीं पाता है दिल अब बेरूखी की वेदनाएँ “