मुक्तक
प्रीत अधरों पर सजा मुस्कान बनना चाहिए।
हसरतों के ख्वाब सा मेहमान बनना चाहिए।
भूल कर मतभेद मजहब के जियो सब प्यार से-
नेक कर्मों की सदा पहचान बनना चाहिए।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
प्रीत अधरों पर सजा मुस्कान बनना चाहिए।
हसरतों के ख्वाब सा मेहमान बनना चाहिए।
भूल कर मतभेद मजहब के जियो सब प्यार से-
नेक कर्मों की सदा पहचान बनना चाहिए।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’