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11 Aug 2017 · 1 min read

मुक्तक

कही नफरत कही चाहत कही मुश्किल जमाने में
खुदा का नूर बसता है गजल औऱ गीत लिखने में
मैं कैसे लिख दूँ तुमको रात मेरी ज्योत्स्ना बतला
कि हर एक रंग छुपाता है तेरे रुख के नकाबों में

कोई कैसे समझ पाता मोहबत को इबादत को
अभी हम खुद नही समझे हसीं की इबादत को
बताओ कैसे समझाये बताओ कैसे बतलाये
कि हर एक पल गुजरता है यहाँ रोटी कमाने को

ये कैसा दौर है कि सदाकत गुम है मेरी जाँ
हँसी के घर मे भी साथी यहाँ गम है मेरी जाँ
कोई कैसे निभाये चाह में कसमो रिवाजो को
यहाँ दिल तोड़ने का रोज का फैसन है मेरी जाँ

गुजरी उम्र सारी बाप ने इज्जत कमाने में
गुजरी उम्र ये हमने ये यहाँ रोटी कमाने में
वहाँ गम का कभी राधे कोई साया नही आया
बुजर्गों की कदर रहती है जिसके आशियाने में

Language: Hindi
1 Like · 1137 Views

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