मुक्तक
कोई दुख का पहर नहीं होता
दूर तू इस क़दर नहीं होता
जो हुआ अच्छा हो गया फिर भी
कितना अच्छा था ग़र नहीं होता।
स्वप्न कितने बना दिए तुमने
सारे सच पर मिटा दिए तुमने
हमको उतने ही कांँटे चुभने हैं
पुष्प जितने बिछा दिए तुमने।
एक दूजे से चुम्बित अधर बन गए
एक दूजे की ख़ातिर नज़र बन गए
ज़िन्दगी के सफ़र हमने साझा किए
और फिर एक दिन हमसफ़र बन गए।।
शब्द इक भी न पाया तुम्हारे बिना
क्या कहूँ कैसे गाया तुम्हारे बिना
सँग तुम्हारे मैं भूला जगत को मग़र
मैंने तुमको भुलाया तुम्हारे बिना।।
बात होती है हर पल ही कोहराम की
अब ये दुनिया नहीं है मेरे काम की
इससे पहले मेरी नींद टूटे मुझे
नींद आ जाये प्रियतम तेरे नाम की।
रास्ता एक मिल कर बनाते नहीं
एक सुर में कभी गीत गाते नहीं
जबकि तू प्लस है और माइनस मैं मग़र
जाने क्या है कि हम पास आते नहीं।
जितने वादे जहांँ ने किए हैं प्रिये
ज़ख्म उतने ही पल पल दिए हैं प्रिये
मुस्कुराहट समर्पित जगत को मग़र
मेरे आँसू तुम्हारे लिए हैं प्रिये।
होना वीरान वन है तुम आ जाओ ना
तुमसे मिलने का मन है तुम आ जाओ ना
तुम भी डालो प्रिये आख़िरी आहुती
आज सब कुछ हवन है तुम आ जाओ ना।
-आकाश अगम