आधुनिक हो गये हैं हम
आधुनिक हो गये हैं हम
अपनों को भूल गये हैं हम
संस्कार की भाषा, प्यार की परिभाषा
अपना इतिहास, भूगोल भूल गये हैं हम
अपना गाँव नीम और पीपल की छाँव
आंगन में दादा जी के पांव भूल गए हैं हम
मॉल, सिनेमा, संस्कृति को बेचते
उनमें खुद का मोल भूल गये हैं हम
हम ही भारत का गौरव, विश्व गुरु कहलाये हैं
चाणक्य चन्द्रगुप्त विस्तार सब भूल गये हैं हम
अध्यात्म के आलोक से नित्य जगत किया प्रकाशित
गीता के श्लोको को, राम चरित को भूल गये हैं हम
यदि चाहें हम कल संवारना, धर्म बचाना खुद को बचाना
दीप बन जाओ ज्ञान ज्योति जलाना क्यों भूल गये हैं हम
आओ पुनः प्रज्ज्वलित कर लें भविष्य नया सुनिश्चित कर लें
दें नन्हें हाथों में ज्ञान दीप हम,अक्सर जिनको भूल गये हम