मुक्तक
विधा- मुक्तक (सादर समीक्षार्थ)
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साँस जाती रही आश जाता रहा।
मौत के संग मैं गुनगुनाता रहा।
लोग अपने खड़े थे मुझे घेर कर-
मैं तुझे याद कर तड़फड़ाता रहा।
दूर तुम से नहीं खुद से’ जाता रहा।
मौत से रोज पंजा लडाता रहा।
कोई’ पहरा मुहब्बत नहीं मानता-
नाम लब पे तुम्हारा ही आता रहा।
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(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य’
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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