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18 Dec 2020 · 1 min read

मावस का अंधियारा छंटकर

बुरा वक्त भी ढल जाता है, सोच अगर अच्छी होती।
फसल वही होती खेतों में,जो दुनिया उसमें बोती।।
धैर्य अगर खोया इस पल तो, बहुत पड़ेगा पछताना।
संयम जिसने तजा समय पर,वह दुनिया पल पल रोती।।
********************
हो कितना भी गहन अंधेरा,भोर सुबह का होता है।
सूरज के सम्मुख आने पर,तेज स्वयं ही खोता है।
शीघ्र मरेगा काला विषधर,कोरोना भी संबल से,
जिसने पालन किया न संयम,वही समय पर रोता है।
एक मुक्तक
मावस का अँधियारा छँटकर, नित नया सवेरा आता है।
कलियाँ भी खिल उठती हैं सब,मन आनन्दित हो जाताहै।
नया भाव जग जाता मन में,चिड़ियों की मीठी चहकों से –
नयी सोच का सृजन होता, मन आशान्वित हो जाता है।

आधार छंद : चौपाई (मापनीमुक्त मात्रिक)
विधान-16 मात्रा, अंत में वाचिक गाल वर्जित,
आदि में द्विकल-त्रिकल-त्रिकल वर्जित।
ध्रुव शब्द- जन्म

अनुपम है उपहार जिंदगी।
ईश्वर का उपकार जिंदगी।
जन्म मिला, जी भरके जी लो;
क्यों करते बेकार जिंदगी।।

शाश्वत तो बस जन्म मरण है।
जीवन का नित होय क्षरण है।
मय को तज दे मूर्ख मनुज ऐ!
संकट मोचक प्रभू शरण है।

?अटल मुरादाबादी ?

Language: Hindi
4 Likes · 1 Comment · 322 Views
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