मुक्तक
वो जो चीखते थे रील लाईफ में
आज क्यों खामोश हैं वाईफ़ पे ।
-अजय प्रसाद
खोखले रंगीनियों में डूबे हुए लोग
ज़िंदगी की जंग से ऊबे हुए लोग।
बातें करते हैं उन आदर्शो की आज
खुद की हस्ती के मनसूबे हुए लोग ।
-अजय प्रसाद
उंची दुकान और फीकी है पकवान
कितने स्वार्थी होतें हैं नकली महान।
खेल कर जज़्बातों से भूला देतें हैं ये
आखिर हैं किस मिट्टी के बने इन्सान।
-अजय प्रसाद