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18 May 2020 · 1 min read

मुक्तक

लब सज़ायाफ़्ता है आंखें अक्सर बोल पड़ती हैं
तेरी मर्जी हो के न हो दर्द पे आंखे रो पड़ती हैं
~ सिद्धार्थ
मैं उदासी से खुला भला क्यूं लूं…
तुम मुस्कान बन
ठहरते होठों पे तो बात अलग थी…
तेरे आंखों को भला आइना क्यूं करूं मस्वविर
मेरीदीद को तरसती आंखे तेरी तो अलग बात थी
~ सिद्धार्थ

Language: Hindi
2 Likes · 221 Views
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